पटेल मनिषाबहन प्रभुदास
(शोधार्थी)
दसवीं शताप्दी के आस-पास आधुनिक भारतीय भाषाओं का उद्धभव माना गया है । संस्कृत भाषा को सभी भाषाओं की जननी मानी जाती है । विद्वानों को वेदों के बिना किसी विकार से संप्रेषित करने के लिए भाषाई विश्लेषण के सिद्धांतो का अध्ययन करना पडा, उन सिद्धांतो को उन्होंने संस्कृत पर लागू किया जिससे व्याकरण का विकास हुआ, जो संस्कृत और सामयिक बोली दोनों से जुडा था । संस्कृत भाषा को व्याकरण के नियमों में बोधनेवाले ‘पाणिनी’ थे । उसके बाद बोलचाल की भाषा और पाकृत से आधुनिक भारतीय भाषाएँ विकसित होती चली गई ।
भिन्न-भिन्न काल खंडो में भिन्न-भिन्न भाषाएँ भारत में बोली जाने लगी और लिखी जाने भी लगी । संस्कृत भाषा को ही देव भाषा कहा जाता है । लेकिन ऐतिहासिक द्रष्टि से देखे तो भारतीय आर्य भाषा को तीन कालो में बाँटा जा सकता है –
१. प्राचीन भारतीय आरह्य भाषा (२००० ई. पू. से ५०० ई. पू.)
२. मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा (५०० ई. पू. से १००० ई.)
३. आधुनिक भारतीय आर्य भाषा (१००० ई. से अब तक)
संस्कृत भाषा का रूप प्रथम काल मे मिलता है । जिनका समय ४५०० ई. पू. से ५०० ई. पू. तक माना जाता है । जिसमे संस्कृत भाषा के दो भागों में बाँटा गया है । पहला है वैदिक संस्कृत और दूसरा है लौकिक संस्कृत । वैदिक संस्कृत मे चार वेद, उपनिषद और ब्राह्मण की रचना हुई है । वैदिक भाषा का पुराना रुप ‘ऋग्वेदसंहिता’ में मिलता है । लौकिक संस्कृत में रामायण, महाभारत, नाटक, व्याकरण इत्यादि लिखे गए है । इस काल में संस्कृत बोलचाल की भाषा नहीं थी किन्तु शिष्ट भाषा बोली से अलग भी नहीं मान सकते है ।
क्षेत्रिय बोलियों का भी विकास उसी के साथ हुआ जिसमे पश्चिमोत्तरी, मध्यदेशी तथा पूर्वी का समावेश होता है । संस्कृतकाल में बोलचाल की जो भाषा दब चूकी थी, वह अनुकूल समय पाकर विकसित हुई । वो तीन अवस्था मे विकसित हुई, प्रथम अवस्था मे ‘पालि’ के रुप में । यह भारत की प्रथम ‘देशभाषा’ है । बौद्धग्रंथो मे इसका रुप देखने को मिलता है । श्रीलंका के लोग ‘पालि’ को ‘मागधी’ भी कहते है । जिससे क्षेत्रीय बोलियों की संख्या चार हो गयी – पश्चिमेत्तर, मध्यदेशी, पूर्वी और दक्षिणी ।
प्राकृत भाषा से ही विभिन्न क्षेत्रीय अपभ्रंशो का विकास हुआ । जिसमे ग्रामीण भाषा, देशी भाषा, अवहंस, अवहत्थ, अवहठ, अवहट आदि अपभ्रंश के नाम है । अपभ्रंश का अर्थ होता है गिरा हुआ, बिगडा हुआ, या भ्रष्ट । आधुनिक आर्य भाषाओं में लहंदा, पंजाबी, सिंधी, गुजराती, मराठी, हिंदी, उड़िया, बांगला, असमिया का विकास इन्हीं अपभ्रंश से माना जाता है ।
आधुनिक भारतीय भाषा का विकास नीचे दी हुई तालिका से समझा जा सकता है ।
अपभ्रंश आधुनिक भारतीय भाषाएँ
शौरसेनी पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाडी, गुजराती
पैशाची लहंदा, पंजाबी
ब्राचड सिंधी
महाराष्ट्री मराठी
मागधी बिहारी, बंगला, उड़िया, असमिया
अर्ध मागधी पूर्वी हिंदी
शैरसेनी के तीन रुप माने गए है जिसमे पहला नागर, नागर से राजस्थानी और गुजराती की उत्पत्ति हुई । दूसरी उपनागर, उपनागर से पश्चिमी हिंदी यानि बंजादि का विकास हुआ । तीसरा ब्राचड, ब्राचड से सिंधी, पंजाबी और लहँदा का विकास हुआ । आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं का क्षेत्र संपूर्ण उत्तर भारत माना गया है । जिसमें उड़िया, मध्यप्रदेश, उत्तराखंण्ड, बिहार, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश आते है ।
आधुनिक आर्यभाषाओं का सामान्य परिचयः
१. सिंधी
सिंध प्रांत में सिंधु नदी के किनारों पर सिंधी भाषा बोली जाती है । सिंधी का विकास ‘ब्राचड’ अपभ्रंश से हुआ है । इस भाषा को बोलनेवालों की संख्या मुस्लिमों में अधिक है, जिस में फारसी शब्दों का भी प्रयोग हुआ है । भारत में कच्छ, अजमेर, बम्बई तथा दिल्ली आदि सिंध प्रान्त क्षेत्र है ।
२. लहंदा
लहंदा पश्चिमी पंजाब की भाषा कहीं जाती है, जो वर्तमान में पाकिस्तान में पडता है । लहंदा और पंजाबी में इतनी साम्यता है कि दोनों में भेड करना मुश्किल है । पैशाची या कैकेय अपभ्रंश से इसका विकास हुआ है ।
३. पंजाबी
इसे ‘पूर्वी पंजाबी’ भी कहा जाता है । कुछ विद्वान इसकी उत्पत्ति ‘टक्क’ अपभ्रंश से मानते है । लैकिन उसका विकास पैशाची या कैकेय अपभ्रंश से हुआ है । ये प्राचीन मध्य पंजाब की भाषा है । पंजाबी भाषा पर शौरसेनी का प्रभाव अधिक है ।
४. गुजराती
गुजराती नाम सतरवीं सदी में कवि प्रेमानंद ने दिया था । शौरसेनी अपभ्रंश के नागर रूप के पश्चिमी रुप से इसका विकास हुआ है । गुजरात के लोगों की भाषा ‘गुजराती’ कहीं जाती है । गुजरात, काठियावाड कोर कच्छ में बोली जाती है ।
५. राजस्थानी
इसकी लिपी नागरी तथा महाजनी है । इसका विकास शौरसेनी के नागर अपभ्रंश के पूर्वोत्तर रुप से माना जाता है । क्षेत्र राजस्थान है । मारवाडी, जयपुरी, मेवाती, मालवी आदि उपबोलियाँ है ।
६. पूर्वी हिंदी
इसमें अवधी (कोसली), बधेली, छत्तीसगढी तीन बोलियाँ हैं । इसका विकास अर्ध मागधी अपभ्रंश से हुआ है । इसकी उपभ्राषाएँ देवनागरी लिपी में लिखी जाती है ।
७. पश्चिमी हिंदी
पश्चिमी हिंदी का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है । मध्यदेश की भाषा है । इसकी ५ बोलियाँ है जिसमेः कन्नोजी, खडीबोली, ब्रज, बाँगरु और बुँदेली उल्लेखनीय है । खड़ीबोली जो साहित्यिक रुप में ‘हिंदी’ नाम से प्रसिद्ध है ।
८. बिहारी
जांर्ज ग्रियर्सन ने बिहारी भाषा का नाम दिया था । इसकी उत्पत्ति मागधी अपभ्रंश के पश्चिमी रुप से हुई है । लिपि नागरी, मैथिली महाजनी है । क्षेत्र बिहार और उत्तर प्रदेश का पूर्वी भाग है । इसमें मैथिली, मगदी, भोजपुरी उपभाषाएँ है ।
९. पहाड़ी
लिपी नागरी है । शैरसेनी अपभ्रंश से इसका विकास हुआ है । इसको तीन वर्गो मे बाँटा गया है । (१) पूर्वी पहाड़ी जिसकी प्रधान बोली नेपाली है । (२) मध्य पहाड़ी जिसमें गढ़वाली और कुमाऊँनी आते है । (३) पश्चिमी पहाड़ी जिसके अंतर्गत २० बोलियाँ है ।
१०. उड़िया
वर्तमान उडिया प्रान्त की भाषा है प्राचीन में उत्कल की थी । मागधी अपभ्रंश से निकली है । ब्राह्मी लिपी की उत्तर शैली का विकसित रुप है । गंजामी, संभलपुरी और भत्री इसकी बोलियाँ है ।
११. बंगला
बंगाल प्रदेश तथा बांग्लादेश में ये भाषा बोली जाती है । सोलहवीं सदी तक इसे ‘गौड़’ या ‘गौडीय’ भाषा कहा जाता था । मागधी अपभ्रंश के पूर्वी रुप से विकसित हुई है । लिपी ब्राह्मी मानी गई है । वर्तमान मे इसकी ५ उपबोलियाँ है – राढ़ी, बंगाली, झारखंडी, वरेंद्री, कामरुपी ।
१२. असमिया
१९६४ की गणना के अनुसार इसके बोलने वाले ३८ लाख थे । लिपी बांग्ला से कुछ भिन्न है । मागधी अपभ्रंश के पूर्वोत्तरी रुप से विकसित हुई है । असम प्रांत की भाषा है ।
१३. मराठी
महाराष्ट्र के आधार पर मराठी नाम माना गया है । भारत की प्रमुख आधुनिक भाषाओं में से एक महत्वपूर्ण भाषा ‘मराठी’ है । लिपी देव-नागरी है कुछ विद्वान ‘मोडी लिपी’ का भी प्रयोग करते है, जिसका आविष्कार महाराणा शिवाजी के मंत्र ‘बालाजी अवाणी’ ने किया था । डाँगी, वन्दारी, अहिराणी, कोंकणी बोलियाँ है । जिसमे से कौंकणी को अब अलग भाषा माना गया है ।
संदर्भग्रंथी सूची
१. भाषा विज्ञान – भोलानाथ तिवारी
२. आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना – वासुदेवनंदन प्रसाद
३. भारतीय भाषा परिचय – डॉ. कुसुम बांठिया
४. भारतीय आर्य भाषाएँ – इम्नु